बिन प्यार , जीवन है बेकार
दुनिया में हर तरफ इलज़ामों की बौछार है
फूल सी जिंदगी पे खारोंका अलगार है
हर शख्स उलझनों से घिरा है आज
कोई किसी का बहुत कम गमख्वार है
हो गया समाज से बिलकुल दूर अमन
भूल गए प्रेम व मुहब्बत याद रह गया सिर्फ गबन
अबतो लाचारों का जीना दुशवार है
समाज रिश्वत और बेईमानी का अबार है
रिशता अब दौलत से आंका जाता है
निर्धन जानवरो की तरह हांका जाता है
मजबूत हो रिशता होता है आदमी का जनम
भूलकर रिशता होने लगता है जुल्मों सितम
जिस्मो जान का मिलाप रिशते की मिसाल है
बिन जान दुनिया में जिस्म का रहना मुहाल है
जिंदगी बन जाये बागे अदन कौसर
जो बोलो तो खूब सोच समझकर
अलगार = हमला दुशवार = मुश्किल -मुहाल
खार = कांटा आका = परखा जात्य
गमख्वार = हमदर्द बागे अदन = जन्नत
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