मजदूर करोना से चूर
किस खता की या रब महनत कशो का हो रहा इम्तिहान
जिन से इस जहाँ में हैं रौनक , हुस्नो जमाल और शान
चिलचिलाती धुप भूक से बेदम पैर में चप्पल नहीं
इन बेचारों की मुसीबत का कोई हल नहीं
सुबह से शाम रोजी हाय रोजी इनका मिशन
इनकी मेहनत के बदौलत हासिल करता है सुख अमीरो का तन
क्या इनकी तकदीर में यहीं ठोकर और रोना है
करोना की मार को क्या इन्ही को सिर्फ सहना है ?
गांव पहुंचकर अछूतो की तरह अलग बहुत दूर
दिल थामे मसोसकर रोते रहते है यह मजदूर
हिन्द की दास्ताँ भरी है दान पुन सखावत से
फिर इनपर लोग रहम नहीं खाते कौन सी अदावत से
दिलों में बसाकर सुनहरे सपने चाको चौबंद
चप्पे चप्पे से हटाते रहते हैं गरदिशों के बंद
खुद को और सपूतो को हर वक्त तैयार रखते हैं
अपने मुल्क से देखो यह कितना प्यार करते हैं ।
गर यही मजदूर खस व् खाशाक समझे जायेंगे
मुल्क की किस्मत में सिर्फ पत्थर नजर आयेंगे
कब तक होता रहेगा इन मजदूरों का इस्तेहसाल
कब टूटेगी हुकमरानो की फेरेबी चाल
इनके एहसास की चिंगारी जब बन जायेंगी शोला
उठेगीं हर तरफ अर्थी टूट जायेंगा खुशियों का डोला
छिन जाएगी सब के होंठों की मुस्कान
औंधे मुहं नजर आयेगा यह देश महान
ALFA